न्यूज सर्च, बिलासपुर, फरवरी 22 –
कहते हैं डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होता है वह मनुष्य की जान बचाकर उसे नया जीवन भी दे सकता है और उसकी खोई काया को भी लटा सकता है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है सिम्स के डॉक्टरों ने। यहां सीपत निवासी 28 वर्षीय चंद्रप्रकाश का 21 जनवरी को नरगोड़ा के पास भयंकर एक्सीडेंट हुआ था। इसमें चंद्रप्रकाश के चेहरे की सारी हड्डियां टूट गई थीं। सिम्स के डॉक्टरों ने आठ घंटे तक ऑपरेशन कर युवक के चेहरे को न केवल विकृत होने से बचाया है बल्कि उसे पहले जैसी सुंदरता और नया जीवन भी दिया। ऑपरेशन के बाद युवक पूरी तरह से ठीक हो गया है। उसे सिम्स से डिस्चार्ज भी कर दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक 31 जनवरी को एक्सीडेंट में घायल 28 वर्षीय चंद्र प्रकाश जब सिम्स गया था तो डॉ. केतकी नीकर, डॉ. हेमलता राजमणि, डॉ. प्रकाश खरे, डॉ. सोनल पटेल, डॉ. भावना रायजादा और डॉ. राकेश निगम की टीम ने जांच कर उनके ऑपरेशन करने योजना बनाई थी। उनके सामने थी उनके चेहरे की सारी टूटी हड्डियों को जोड़ना। उसके ऊपर का जबड़ा भी टूट गया था। माथा और नाक की सभी हड्डियां भी टूट गई थीं। दोनों आंखों के चारों ओर की हड्डियां भी चूर-चूर हो गई थीं। पूरे चेहरे में एक भी हड्डी सही सलामत नहीं बची थी। बाहर और अंदर से चेहरा पूरी तरीके से विकृत दिखाई दे रहा था।
पहले तो डॉक्टर ऑपरेशन करने से डरे, लेकिन फिर हिम्मत से काम लिया और पहले 10 फरवरी तक बिना ऑपरेशन के इलाज किया। जब सभी जरूरी टेस्ट हो गए तो 11 फरवरी को ऑपरेशन करने का फैसला किया। ऑपरेशन करने से पहले मरीज की थ्री-डी सीटी फेस स्कैन करा लिया था। स्कैन में पूरे चेहरे की हड्डियां चूर-चूर थीं। चेहरे को बिना बिगाड़े हड्डियों को जोड़ने के लिए किस तरह ऑपरेशन करना है सब कुछ प्लान कर लिया था। सबसे पहले सांस लेने के लिए मरीज के मुंह से ट्यूब डाला, जिसे गले के पिछले यानी पीठ के थोड़ी ऊपर चीरा लगाकर निकाला ताकि चेहरे पर किसी तरह के दाग न आएं। वैसे तो नाक से भी ट्यूब को डाला जा सकता था लेकिन इस केस में नाक भी बनाना था।
दूसरा चीरा एक कान से दूसरे कान के पास लगाया। इसके बाद पूरा चेहरा नीचे की ओर यानी ओंठ की तरफ खींचा लिया। ऐसा करने से मरीज की नाक, जबड़ा, और टूटी हड्डियां दिखने लगी। इसके बाद जहां-जहां फ्रैक्चर दिखा उसे स्क्रू और प्लेट से जोड़ते चले गए। पूरे चेहरे में 60 स्क्रू और 25 प्लेट लगी हैं।
ऐसी स्थिति में मरीज की जान नहीं जाती है लेकिन उसका चेहरा खराब हो जाता है। कहा जाए तो लंबा, टेडा, या फिर ऊंचा-नीचा हो जाता है। एक्सीडेंट में व्यक्ति की जान तभी जाती है जब चोट लगने के बाद सांस लेने की जगह जैसे नाक और गले में ब्लॉकेज हो जाए और सांस नहीं ले पाने के कारण उसकी जान चली जाती है। इस केस में ऐसा नहीं था। मरीज के सांस लेने की जगह में ब्लॉकेज नहीं था। चेहरे की हड्डियां बस टूटी थीं। जिसे सावधानी के साथ जोड़ा गया। ऑपरेशन के दौरान मरीज पूरी तरह से बेहोश था।
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